जाने कितने हैं अन्न यहाँ, एक-दूजे से प्रसन्न यहाँ
Travel / 03 Jun 21
जाने कितने हैं अन्न यहाँ
एक-दूजे से प्रसन्न यहाँ
यह ‘रागी’ नहीं अभागी
इसकी किस्मत जागी
यूँ होता श्वेत ‘झंगोरा’ है
यह धान सरीखा गोरा है।
अब यहाँ वो ‘कोदो’-‘कुटकी’ है
‘साँवाँ’ की काया मटकी है
सम्पन हुआ ‘बाजरा’ अब
मिल गई ‘काँगणी’ छुटकी है।
अब जिसका रंग मटमैला है
सब तरफ उन्हीं का पहरा है
इनका साया गहरा है।
यह देते खूब पोषण।
नहीं करते मिटटी का शोषण
तोहफे में दिए जैविक अर
माटी-पानी का सुपोषण
जहाँ मैदा धनिया-सेठ बना।
उपभोगी मोटा पेट बना।
जो हज़म नहीं कर पाए हैं,
उनकी चमड़ी का फेट बना।
अब आएँगे दिन ‘रागी’ के।
उस ‘कुरी’, ‘बटी’, बैरागी के।
अब ‘राजगिरा’ फिर आएगा
और ताज गिरें बड़भागी के।
अब हमला हो चौलाई का।
छँट जाए भरम मलाई का।
चीनी पर भारी सहद हो,
टूटेगा बंध कलाई का।
बीतेगा दौर गुलामी का।
कुपोषण की और सलामी का।
जो बची धरोहर अपनी है
गुज़रा अब वक्त नीलामी का।